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यह संस्थान मुख्यतः कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान के विषयों में स्नातकोत्तर और पीएच.डी पाठ्यक्रम चलाता है। संस्थान में शिक्षण का तरीका केवल क्लास रूम में पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है, छात्रों को नियमित रूप से राष्ट्रीय संग्रहालय की दीघाओं, भंडारण / संग्रहणों के आरक्षण और प्रयोगशाला में ले जाकर व्यावहारिक प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं। व्यावहारिक प्रशिक्षण के एक अंग के रूप में, प्रदर्शन अन्य संग्रहालयों में व्याख्यान, स्मारकों, शैक्षाणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में स्थलों पर जाने के दौरों की व्यवस्था भी की जाती है। छात्रों को प्रत्यक्ष अनुभव देना, उन्हें नए और अभिनव विचारों से परिचित कराना तथा उन्हें मंचों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना, इस शिक्षण के ढांचे का एक अभिन्न अंग है, जो महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ दूरगामी परिणामी भी होते हैं। छात्रों को ऐसे व्यवसायियों, जो भलीभांति प्रशिक्षित एवं अपने-अपने क्षेत्र में सुप्रतिष्ठित हैं, के साथ पारस्परिक चर्चा करने के अवसर मिलते हैं। संस्थान ने भारत और विदेश की संस्थाओं के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सेमिनार, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि का आयोजन करने के लिए करार भी किया है, जिनका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों के साथ आपसी विचार विमर्श को सरल बनाना है। छात्र-छात्राओं को ऐसे मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सदा ही प्रोत्सहित किया जाता है। संस्थान अध्ययन/शोध में सहायता देने के लिए विदेशी अथवा शास्त्रीय भाषाओं के ज्ञान पर भी जोर देता है।
शोध का केन्द्र बिन्दु हमेशा से ही संस्थान की गतिविधियों रही हैं और इस संस्थान द्वारा कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान के क्षेत्र में अन्तर विषयी शोध की व्यापक रेंज प्रस्तुत की गई है। एक कड़ी चयन प्रक्रिया के माध्यम से, जिसमें प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार शामिल है, विद्यार्थियों की सीमित संख्या का प्रति वर्ष स्नातकोत्तर और पीएच.डी. कार्यक्रमों में पंजीकरण किया जाता है। विद्यार्थियों को ऐसे क्षेत्रों की पहचान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिन पर अभी तक कार्य नहीं किया गया है ताकि नवोन्मेष और नूतन शोध किये जा सके। भारत और विदेश से प्रतिष्ठित विद्वानों के व्याख्यान, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशालाएं, सेमिनार, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन और संगोष्ठियाँ आवधिक रूप से आयोजित की जाती हैं ताकि संस्थान में शोध को संपोषित किया जा सके। |