कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान के क्षेत्रों में उन्नत अध्ययनों को आरम्भ करने की तीव्र आवश्यकता पर वर्षो से चर्चा की जाती रही है और 1983 में इस दिशा में पहला कदम उठाया गया, जब राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय और आधुनिक कला इतिहास में डिप्लोमा तथा पोस्ट ग्रेज्युएट डिप्लोमा पाठ्यक्रमों और उनके स्त्रोतों तथा तैल चित्रों के जीर्णोद्धार करने की शुरूआत की गई। वर्ष 1985 में, यह कार्यक्रम राष्ट्रीय संग्रहालय को अंतरित कर दिया गया जिसमें प्राचीन और आधुनिक, पूर्वी और पश्चिमी दोनों को शामिल करते हुए कला इतिहास की शिक्षा देना शामिल करके इसके कार्यक्षेत्र को और अधिक व्यापक बनाया गया। तैल चित्रों के जीर्णाेद्धार कार्यक्रम को भी व्यापक बनाया गया जिसमें जैविक और अजैविक सामग्री की कला की अन्य कृतियों का जीर्णाेद्धार करना भी शामिल किया गया।
इस दृष्टि से, कि छात्र इन उन्नत अध्ययनों से लाभान्वित हो सकते हैं और अपनी जीविका चुन सकते हैं, और इस तथ्य के कारण से कि केवल डिप्लोमा होने से संग्रहालयों, दीर्घाओं और विश्वविद्यालयों में विभिन्न पदों के लिए आवेदन करने और प्रतिस्पर्धा करने के लिए पात्र नहीं होते हैं, एक ऐसे संस्थान की स्थापना करना उपयुक्त समझा गया जो एम.ए. और पी.एच.डी. की डिग्रियां प्रदान कर सके। इसलिए राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान की सोसाइटी, कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान, दिल्ली की स्थापना की गई और सोसाइटीज पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत 27 जनवरी, 1989 को पंजीकृत किया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिशों में आधार पर, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने 28 अप्रैल, 1989 को राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान को उक्त सोसाइटी द्वारा ’विश्वविद्यालयवत्’ का दर्जा दिया जो उक्त सोसाइटी द्वारा शासित होगा।
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